महात्मा गाँधी की कहानियां – Mahatma Gandhi Hindi stories
आज हम महात्मा गाँधी की कहानियां लेकर आए हैं जिन्हें पढ़कर आपको बहुत हौसला मिलेगा। हम सभी महात्मा गांधी जी से भलीभांति परिचित हैं और उनके किए गए महान कार्यों और बलिदानों को हम कभी नहीं भूल सकते। वह बहुत ही साहसी व्यक्ति थे और साथ ही साथ हर गलत विषय के खिलाफ आवाज उठाने का हौसला रखते थे। उनके इन्हीं गुणों के कारण उन के बहुत सारे अनुयाई आज के जमाने में भी है जो उनके पद चिन्हों पर चलते हैं।
1. देश सेवा की सच्ची भावना ( महात्मा गाँधी की कहानियां )
गांधीजी साबरमती आश्रम में रहते थे, यह उस समय की बात है जो अब असहयोग का आंदोलन आरंभ हो गया था। लोगों में देश प्रेम की भावना आने लगी थी और उन्होंने अंग्रेजों को देश से निकाल भगाने और स्वदेशी अपनाने की ठान ली थी।
एक नवयुवक गांधी जी के पास आया और उसने अपना परिचय देते हुए कहा –
मैं! पढ़ा लिखा हूं, अंग्रेजी जानता हूं, उच्च कुलीन हूं, कृपया आप मेरे स्तर का कोई कार्य बताइए! मैं देश सेवा करने का जज्बा रखता हूं और मैं आपको असहयोग आंदोलन में सहायता करना चाहता हूं। गांधीजी धैर्य से उस युवक का पूरा परिचय सुनते रहे किंतु ज्यों ही युवक ने अपना परिचय देना समाप्त किया, वैसे ही गांधी जी बोले फिलहाल आश्रम के लिए भोजन बनाने की व्यवस्था करनी है, इसके लिए तुम चावल बिनने में मेरी सहायता करोगे?
युवक ने अनमने ढंग से गांधी जी के साथ चावल बिनने के कार्य में हाथ बटाया।
उसे यह कार्य करते हुए तनिक भी अच्छा नहीं लग रहा था।
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उसने कल्पना की थी गांधीजी उसकी योग्यता के अनुसार उसे कार्य बताएंगे, किंतु हुआ विपरीत। संध्या का समय था वहां रह रहे लोग आश्रम की सफाई व्यवस्था में लगे हुए थे , ऐसा देखकर उस नवयुवकों तनिक भी अच्छा नहीं लग रहा था।
वह नवयुवक उठा और महात्मा जी से आज्ञा लेना चाहा।
अच्छा महात्मा जी अब आज्ञा दीजिए रात्रि का खाना मैं थोड़ा जल्दी खाता हूं, इसलिए हम मुझे घर जाने की आज्ञा दीजिए। महात्मा ने उस नवयुवक के कंधे पर स्नेह भरा हाथ रखा और कहा आप में देश सेवा की भावना है। यह बहुत ही अच्छी बात है सराहनीय है। किंतु देश सेवा की भावना स्वच्छ मन और निर्मल मन से होना चाहिए। इसमें अपने आप को श्रेष्ठ ना समझ कर सबको समान मानते हुए देश हित में कार्य करना चाहिए।
मैं जो कहना चाहता हूं वह आप समझ रहे होंगे।
वह नवयुवक गांधी जी के बातों को भलीभांति समझ रहा था।
उसने गांधी जी से हाथ जोड़कर क्षमा मांगा और कहा मैं आपकी बातों को भलीभांति समझ रहा हूं। मुझे क्षमा करिए मैं आगे से स्वयं को श्रेष्ठ और अन्य को नीचा नहीं समझूंगा और सच्चे मन से देश सेवा करूंगा। महात्मा जी ने उस नवयुवक को सराहाते हुए गले लगा लिया इससे उस नवयुवक की आंखें भर आई।
मोरल –
सच्ची देश भक्ति के लिए केवल हिम्मत और जज्बा ही आवश्यक नहीं है अपितु यह भी आवश्यक है कि वह देश में रहने वाले सभी लोगों को एक समान दृष्टि रखते हुए देखे ऊंच-नीच का बिना भेद किए हुए सभी लोगों को अपनाएं अन्यथा उसकी देश भक्ति का कोई मतलब नहीं रह जाता। अपने देश मे रहने वाले एक वर्ग को नीची दृष्टि से देखें तो यह देश के अखंडता पर भी खतरा होता है।
2. खादी की क्रांति
(महात्मा गाँधी की कहानियां)
महात्मा गांधी साबरमती के आश्रम में थे। गांधी जी से मिलने वालों का तांता लगा रहता था। शाम को जब वह आगंतुकों से मिल रहे थे, तभी चंपारण से आए हुए एक किसान से मुलाकात हुई। किसान ने गांधीजी को चंपारण में हो रहे अत्याचार और मानवीय मूल्यों का ह्रास के प्रति ध्यान आकृष्ट किया। किसान ने बताया वहां किस प्रकार अंग्रेजों के इशारे पर सेठ-साहूकार साधारण किसानों का शोषण कर रहे हैं। उनकी सारी उपज अंग्रेजों के नाम हो जाती है। यहां तक की तन पर कपड़े नहीं, खाने को घर में भोजन नहीं।
गांधी जी को किसान ने चंपारण में आने का निमंत्रण दिया।
किसान के मुख से चंपारण की हालत सुनकर गांधी जी का हृदय कांप उठा। उन्होंने तत्काल चंपारण जाने का मन बना लिया। चंपारण में पहुंचकर गांधीजी ने वहां की वास्तविकता को अपनी आंखों से देखा। स्त्रियों के तन पर फटे-पुराने मेले कपड़े थे। कई स्त्रियां कपड़ों के अभाव में घर से बाहर नहीं निकलती थी। किसानों द्वारा किए गए उपज पर अंग्रेजों और साहूकारों का अधिकार था। वहां के लोग अपने मन मुताबिक कुछ भी नहीं कर सकते थे। वह विदेशी वस्तुओं पर आश्रित थे।
यहां तक कि कपड़े जैसी मूलभूत आवश्यक वस्तु भी।
गांधीजी ने अंग्रेजो को सबक सिखाने के लिए खादी के वस्त्र निर्माण करने को प्रेरित किया।
गांधी जी ने वहां के जनता को संबोधित करते हुए बताया- स्वयं किस प्रकार चरखे से खादी के वस्त्र बना सकते हैं। पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर हो सकते हैं। उन्हें ऐसा करके अंग्रेजों को करारा जवाब देना चाहिए , जो उनका निरंतर शोषण करते हैं। आश्रम के स्वयंसेवकों ने गांधीजी के विचारों को आगे बढ़ाया।चंपारण के लोगों को चरखे से वस्त्र निर्माण करना सिखाया। देखते ही देखते यह क्रांति के रूप में परिवर्तित हो गया। खादी के वस्त्र की मांग पूरे देश में बढ़ गई।खादी क्रांति के प्रभाव से विदेशों में भी खादी के वस्त्रों की पहुंच हो गई।
मोरल –
- बड़े से बड़े चुनौती को मिलकर दूर किया जा सकता है।
- कुछ कर गुजरने का ठान लो तो फिर किसी भी कठिन कार्य को सरलता से किया जा सकता है।
- गुलामी मानव जीवन के लिए अभिशाप है।
3. गांधी जी का जवाब (सर्वश्रेष्ठ महात्मा गाँधी की कहानियां)
स्वाधीनता संग्राम में गांधीजी का योगदान अविस्मरणीय है।
गांधीजी ने स्वाधीनता संग्राम में जिस प्रकार योगदान दिया, वह आज भी देश में याद किया जाता है। शायद यही कारण था कि आज भी उन्हें राष्ट्रपिता के नाम से संबोधन किया जाता है। जिस प्रकार गांधी जी ने स्वाधीनता आंदोलन के लिए असहयोग आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन, नमक आंदोलन आदि अनेक प्रकार के आंदोलनों का सूत्रपात किया, जो स्वाधीनता संग्राम में मील का पत्थर साबित हुआ। इस आंदोलन के दौरान उन्हें कितनी ही बार जेल भी जाना पड़ा। उन्होंने बिना कुछ सोचे समझे अपनी गिरफ्तारी दी, और वहां रह रहे भारतीय कैदियों के साथ स्वाधीनता संग्राम में जुड़ने की बात किया करते थे, और जेल में रहते हुए भी अपने आंदोलन को चलाया करते थे।
एक दिन की बात है गांधी जी जेल में थे उन्हें एक लंबा चौड़ा पत्र मिला, जिसमें ढेर सारे सवाल किए गए थे।यह पत्र भोलानाथ का था।
भोलानाथ ने गांधी जी से ढेर सारे सवालों के जवाब मांगे थे।
गांधी जी अपने सहयोगी से उन सभी सवालों के जवाब धैर्य पूर्वक लिखवा रहे थे। ऐसा देखते हुए उनके सहयोगी रह नहीं पाया और उसने गांधी जी से प्रश्न किया- क्या इन सभी प्रश्नों के जवाब लिखवाना अनिवार्य है? गांधी जी ने नम्रता पूर्वक कहा बिल्कुल भोलानाथ का प्रश्न केवल भोलानाथ का नहीं होकर अपितु हर एक भारतीय का प्रश्न है। इसलिए इसे जवाब लिखवाना ही पड़ेगा और जवाब देने की प्रवृत्ति यदि आप में है तो आपसे महान कोई नहीं है। किसी भी प्रश्न का जवाब देने का सामर्थ्य व्यक्ति में होना चाहिए और भोलानाथ ने तो मुझे उस समय मदद की, जब मुझे मदद की बेहद ही सख्त आवश्यकता थी।
जब मैंने आंदोलन आरंभ किया था तो वह पहला व्यक्ति है जिसने मेरे साथ कंधे से कंधे मिलाकर सबसे पहले खड़ा हुआ और जेल भी गया। यही नहीं भोलानाथ असहयोग आंदोलन में अपनी जमीं – जमाई सरकारी नौकरी छोड़ने वाला पहला स्वयंसेवक था। ऐसे स्वयंसेवकों का आभारी में मरते दम तक रहूंगा मैं उनका सहयोग और उनका परिश्रम कभी नहीं भुला सकूंगा।
ऐसा कहते-कहते महात्मा गांधी भावुक हो गए,
उनकी आंखें नम हो गई और गला भर आया अब सभी को समझ आ गया था कि गांधीजी के विचार क्या है वह अपनी कृतज्ञता के लिए कुछ भी कर सकते हैं।
मोरल –
- किसी के द्वारा पूछे गए प्रश्न से बचना नहीं चाहिए बल्कि उसका सामना करना चाहिए।
- जिस किसी ने तुम्हारी मदद की हो उसके लिए सदैव कृतज्ञता का भाव अपने हृदय में रखना चाहिए।
- किसी भी बड़े उद्देश्य को पूरा करने से पूर्व अपने हृदय को पवित्र रखना परम आवश्यक है।
4. वचन के प्रति दृढ़
( प्रेरणादायक महात्मा गाँधी की कहानियां )
असहयोग आंदोलन गांधीजी ने बड़े पैमाने पर शुरू तो कर दिया। आंदोलन ने देखते ही देखते विकराल रूप धारण कर लिया। आंदोलन सुचारू रूप से चल सके इसके लिए धन की आवश्यकता हुई । गांधी जी ने अपने कार्यकर्ताओं से स्वेक्षा से सहयोग करने का आह्वान किया। देशभर के कार्यकर्ताओं ने गांधी जी के इस आह्वान में बढ़-चढ़कर भाग लिया।
देखते ही देखते उनके पास पर्याप्त धन जुट गया। यह धन प्रत्येक घर से मिलने वाला था।इसमें जाति-धर्म-पंथ आदि का कोई दुराग्रह नहीं था।
गांधीजी अपने आश्रम में बैठे थे, उनके शिष्य से आंदोलन के विषय में सलाह-मशवरा कर रहे थे।आश्रम में तभी एक साहूकार का आना हुआ।
साहूकार ने गांधी जी के आंदोलन में सहयोग की राशि को देने की इच्छा जाहिर की।
यह सहयोग राशि काफी बड़ी थी, किंतु उससे बड़ा साहूकार का स्वार्थ था।
साहूकार ने गांधी जी को प्रणाम किया और उनके आंदोलन में मोटी राशि सहयोग रूप में भेंट किया।
किंतु साहूकार ने इस राशि को दलितों और हिंदुओं पर खर्च न करने के लिए कहा।साहूकार का कहना था- मेरा यह धन मुस्लिम के कल्याण में खर्च किया जाए।गांधीजी वचन से बंधे हुए थे, उन्होंने उस राशि को तत्काल साहूकार को वापस लौटा दिया।
उनके इरादों को गलत बताते हुए आश्रम से बाहर जाने को कहा।गांधी जी ने ऐसे राशि को कभी स्वीकार नहीं किया , जो पूर्वाग्रह से ग्रसित हो।
यही कारण है गाँधी जी ने सहयोग राशि को पारदर्शी रखा।
मोरल –
- किसी भी कार्य को पूरी निष्ठा के साथ किया जाना चाहिए।
- कार्य को करते समय कैसी भी परिस्थितियां हो बुरी संगत में आने से बचना चाहिए।
- समाज कल्याण का यह अर्थ जाति, धर्म, मजहब, पंथ से ऊपर होना चाहिए।
5. बलि प्रथा का विरोध
( महात्मा गाँधी की कहानियां सामाजिक कुरीतियों पर )
चंपारण के दौरे पर जब गांधीजी पहुंचे उन्होंने देखा एक जुलूस देवी स्थान की ओर जा रही है। वह भीड़ ढोल-नगाड़ा बजाकर नाचते-गाते जा रही था। भीड़ से बकरे की करुण आवाज जोर-जोर से आ रही थी
गांधी जी को आश्चर्य हुआ यह भीड़ के बीच से बकरे की आवाज कैसे आ रही है ?
स्वयंसेवकों से पूछताछ की तो मालूम हुआ बकरे को बलि के लिए देवी स्थान ले जाया जा रहा है। इस बकरे की बलि से देवी को प्रसन्न किया जाता है।
किसी भी प्रकार के दुष्कर कार्य की पूर्ति के लिए बकरे की बलि शुभ मानी जाती है।गांधीजी को बड़ा ही आश्चर्य हुआ। इस प्रकार की बातों को उन्होंने सुना तो था, आज देख भी लिया।तत्काल वह देवी स्थान पहुंच गए, बकरे की गले में बंधी रस्सी को पकड़ लिया।लोग गांधी जी को जानते थे और उनका बड़ा आदर करते थे।सभी को आश्चर्य हुआ गांधी जी ने आखिर ऐसा क्यों किया।
पूछने पर गांधी जी ने कहा बकरे की बलि देने पर अगर देवी प्रसन्न होती है, तो मनुष्य की बलि देने पर और प्रसन्न होंगी। मनुष्य की बलि देने पर सभी मनोवांछित कार्य पूरे होंगे।इसलिए बकरे के स्थान पर मेरी बलि दी जाए, लोगों को आश्चर्य हुआ।
गांधी जी ने इस प्रकार के अंधविश्वास और बलि के रूप में जीव हत्या को विस्तार से लोगों को समझाया।वहां के लोगों ने गांधी जी से हाथ जोड़कर माफी मांगी और जीव हत्या ना करने की कसम भी खाई।तब से कुछ अपवाद के अतिरिक्त वहां जीव हत्या जैसा कोई समाचार सुनने को नहीं मिला।
मोरल –
- जीव हत्या से बढ़कर दूसरा और कोई पाप नहीं हो सकता।
- अंधविश्वास व्यक्ति को बुरे कर्म करने पर विवश करती है।
- भीड़ और गलत संगत का साथ कभी नहीं देना चाहिए। इनके संपर्क में रहने से स्वयं ही पाप के भागी बन जाते हैं।
6. महात्मा गांधी की एक मीठी सजा
आजादी के समय की बात है, जब महात्मा गांधी साबरमती आश्रम में रह रहे थे।
जैसा कि सभी जानते हैं महात्मा गांधी समय और नियम पालन के सच्चे समर्थक थे। उनके आचरण में समय का पालन करना शामिल था। वह किसी भी बैठक या समारोह में शामिल होने समय से पूर्व ही पहुंचा करते थे, गाँधी जी नहीं चाहते थे कि उनके कारण किसी अन्य व्यक्ति को परेशानी का सामना करना पड़े।
महात्मा गांधी व्यर्थ और फिजूलखर्ची के भी घोर विरोधी थे।
कई बार उनके स्वागत सत्कार में जब कार्यकर्ता दिखावे के लिए खर्च करते , तो वह उनको धन को व्यर्थ में गवाने की बात कहकर उनसे आगे ध्यान रखने की बात किया करते थे। महात्मा गांधी जैसा कि आप जानते हैं वह सत्य अहिंसा और भाईचारे के प्रबल समर्थक थे , उन्होंने कई अनेक उदाहरण पेश किए जो समाज में आज भी सुनने सुनाने को मिलता है। कई बार वह अचानक भीड़ में पहुंचकर बाह्य आडंबरों और अंधविश्वासों के प्रति लोगों को जागरूक किया करते थे।
महात्मा गांधी जहां भी रहते हैं, वह समय का पालन अवश्य करते।
उन्होंने साबरमती आश्रम में भी समय पालन के लिए कड़े नियम बनाये हुए थे।
सभी कार्य समय के अनुरूप होना चाहिए ऐसी, व्यवस्था की गई थी। भोजन के समय दो बार घंटी बजाने का प्रावधान था, अगर कोई दो घंटी बजने के बाद भी भोजन स्थल पर उपस्थित नहीं होता तो उन्हें पंक्ति के उठने तक उन्हें खड़े होकर प्रतीक्षा करनी पड़ती थी। एक दिन महात्मा गांधी किसी आवश्यक कार्य में व्यस्त थे, भोजन का समय हो चुका था। प्रथम घंटी और फिर द्वितीय घंटी बज चुकी थी, किंतु महात्मा गांधी भोजन स्थल तक नहीं पहुंच पाए। जैसे ही वह भोजन स्थल तक पहुंचे उससे पूर्व ही पंक्ति भोजन के लिए बैठ चुकी थी। महात्मा गांधी को आता देख एक कार्यकर्ता ने उनके पंक्ति में बैठने की व्यवस्था करनी चाहिए, किंतु महात्मा गांधी ने नियम सबके लिए बराबर कहकर ऐसा करने से कार्यकर्ता को रोक दिया।
महात्मा गांधी अन्य लोगों की भांति पंक्ति के उठने तक एक तरफ खड़े रहे।
महात्मा गाँधी को खड़ा देख कार्यकर्ताओं ने कुर्सी लाने का भी प्रबंध किया किंतु महात्मा गांधी ने सजा के तौर पर कुर्सी को स्वीकार नहीं किया। क्योंकि सभी कार्यकर्ता पंक्ति उठने तक खड़े होकर ही अपनी बारी का प्रतीक्षा किया करते थे। वह इस समय साधारण व्यक्ति थे और सजा सबके लिए बराबर थी इसलिए उन्होंने एक साधारण कार्यकर्ता की भांति अपनी सजा को स्वतः काटा।
ऐसा देखकर सभी कार्यकर्ता महात्मा गांधी से और अधिक प्रेरित हुए।
(संकलन – निशिकांत ‘हिंदी विभाग’)
7. नेताओं का फर्क ( महात्मा गाँधी की कहानियां )
आज नेताओं के पास इतने पैसे और धन-संपत्ति आ गई है, चाहे वह अनुचित कार्य करके ही क्यों ना आई हो। सभी एस मौज की जिंदगी जीते और मासूम भोले भाले लोगों को गुमराह करके सत्य को असत्य बता कर भ्रमित करके अपनी राजनीति चमकाते और दिन रात एसी की ठंडी हवा में तरबतर रहते। आज उनका दौरा किसी गरीब बस्ती में होता तो वहां पहले ही साफ सफाई की व्यवस्था कर दी जाती। लोगों को नहाने के लिए साबुन बांटे जाते, ताकि नेता जी से मिलने वाला कोई व्यक्ति मेला ना रहे। नेताजी के बैठने उठने के स्थान पर एयर कंडीशनर लगा दिया जाता ताकि नेताजी को गर्मी ना लगे और नेता जी के वहां से पलायन करने पर वह सभी चीजें अदृश्य हो जाती।
पहले जब राजनीति की शुरुआत हुई थी तब इस प्रकार के दिखावे और आडंबर नहीं हुआ करते थे।
आज की राजनीति और पुरानी राजनीति में जमीन-आसमान का फर्क है, पहले देश भक्ति और समाज कल्याण की भावना से राजनीति हुआ करती थी, आज उसका जगह स्वयं का भंडार भरने और लोगों को गुमराह करने की राजनीति हो गई है। एक दिन की बात है महात्मा गांधी चंपारण के एक गांव में गए वहां कार्यकर्ताओं ने महात्मा गांधी के स्वागत में ध्वज लगाएं तोरण बजाय और फूल माला आदि का प्रबंध किया। महात्मा गांधी प्रकार का प्रबंध देखकर कुछ समझ नहीं पाए महात्मा गांधी ने उस दिन मौन व्रत धारण किया हुआ था, इसलिए अपने कार्यकर्ताओं से बात नहीं कर पाए और चुप रहे।
अगले दिन जब महात्मा गांधी का मौन व्रत समाप्त हुआ उन्होंने कार्यकर्ता को बुलाया और इस प्रकार के आयोजन में हुए खर्च का ब्यौरा मांगा तो उन्होंने बताया यह आपके स्वागत के लिए हमने चंदा इकट्ठा किया और शहर से फूल मालाएं तथा अन्य सामग्रियां मंगाई क्योंकि गांव में यह मिलना मुश्किल था। महात्मा गांधी बेहद दुखी हुए और उन्होंने कहा आप लोग मुझे धोखा दे रहे हैं।
मेरे स्वागत में इतना खर्च करने की क्या आवश्यकता थी।
मैं एक साधारण व्यक्ति हूं, और साधारण स्वागत का अधिकारी हूं। यह व्यय आप लोगों ने व्यर्थ किया जिससे मेरे हृदय को अधिक पीड़ा हुई। महात्मा गांधी की बातें सुनकर कार्यकर्ताओं की आंखें नम हुई और उन्होंने महात्मा गांधी से क्षमा प्रार्थना की और आगे से इस प्रकार के कार्य दोबारा नहीं होगा यह प्रण लिया। इस प्रकार की राजनीति पहले के नेता किया करते थे जो आज संभव नहीं है आपने भी अपने आसपास अनुभव किया होगा।
( संकलन – निशिकांत ‘हिंदी विभाग’)
8. गांधीजी की सामंजस्यवादी नीति (महात्मा गाँधी की कहानियां)
स्वाधीनता आंदोलन पूरे जोर पर था जिससे अंग्रेज घबरा उठे थे। अंग्रेजों की सदैव से नीति रही है ‘फूट डालो और शासन करो’। अंग्रेजों ने हिंदू-मुसलमान को बांटने के अनेकों प्रयास आरंभ की है। महात्मा गांधी अंग्रेजों की चाल को समझ चुके थे, वह जान गए थे बिना हिंदू-मुसलमान को एक हुए आजादी हासिल नहीं की जा सकती। गांधी जी ने हिंदू-मुसलमान को छोटे-छोटे मतभेद भुलाकर आपस में जोड़ने का प्रयत्न आरंभ किया। उन्होंने अनेकों सर्व धर्म की सभाएं आयोजित की।
मस्जिद में कीर्तन भजन तथा मंदिर में कुरान का पाठ आरंभ करवाया।भारत की जनता ने इस गतिविधि में गांधीजी का भरपूर साथ दिया।
मस्जिदों में हिंदू धर्म के संत महात्माओं को जहां स्थान मिला, वहीं मंदिर में भी मौलवी तथा इस्लाम धर्म के जानकारों को शरण मिली। गांधी जी के प्रयासों से अंग्रेज बौखला उठे थे, उनका प्रयास असफल होता दिख रहा था। उन्हें आभास हो गया था इस प्रकार वह हिंदू-मुसलमान को अलग नहीं कर पाएंगे।इस प्रयास को तोड़ने के लिए उन्होंने अनेकों प्रकार के आरोप गांधी जी पर लगाए। धार्मिक लोगों को उसका कर गांधी जी पर धार्मिक माहौल खराब करने का आरोप भी लगाया गया।
किंतु महात्मा गांधी इससे विचलित नहीं हुए उन्होंने अपने प्रयास को निरंतर जारी रखा।
देखते ही देखते हिंदू मुसलमान एक साथ आ गए और अंग्रेजों को भारत से लौटने पर मजबूर कर दिया।
समापन
आशा है आप को महात्मा गांधी पर लिखी यह सभी कहानियां बहुत पसंद आई होगी।
और आपको इन सभी कहानियों के द्वारा प्रेरणा प्राप्त हुई होगी। अगर आपको कोई विचार प्रकट करना है तो आप नीचे कमेंट बॉक्स में खुलकर लिख सकते हैं। साथ ही साथ हमें यह भी बता सकते हैं कि आगे आप को किस प्रकार की कहानियां चाहिए और किस महान पुरुष पर।